भारतीय संविधान का पहला संशोधन (1951)
भारतीय संविधान का पहला संशोधन (1951)
भारतीय संविधान का पहला संशोधन (1951)
भारत के संविधान का पहला संशोधन 1951 में हुआ था, लेकिन इसकी नींव स्वतंत्रता के बाद सामाजिक न्याय से जुड़ी चुनौतियों में थी। इस संशोधन का तात्कालिक कारण मद्रास राज्य बनाम चंपक दोराइराजन मामला (1951) था, जिसमें सर्वोच्च न्यायालय ने मद्रास सरकार द्वारा लागू किए गए जाति-आधारित आरक्षण को असंवैधानिक ठहराया था। न्यायालय ने कहा कि संविधान का अनुच्छेद 15 (भेदभाव का निषेध) और अनुच्छेद 29 (2) (शैक्षणिक संस्थानों में प्रवेश) जाति के आधार पर किसी भी तरह के आरक्षण की अनुमति नहीं देते।
इस फैसले ने नेहरू सरकार के लिए एक बड़ी चुनौती खड़ी कर दी, क्योंकि सरकार सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों के लिए सुधार लाना चाहती थी। इसी समस्या को हल करने के लिए, संविधान में संशोधन की आवश्यकता महसूस की गई ताकि सरकार को सामाजिक न्याय सुनिश्चित करने के लिए कानूनी अधिकार मिल सके।
संशोधन के प्रमुख प्रावधान
इस संशोधन ने मुख्य रूप से तीन महत्वपूर्ण अनुच्छेदों में बदलाव किए:
अनुच्छेद 15 (4) का जोड़ा जाना: संविधान में एक नया खंड, अनुच्छेद 15 (4), जोड़ा गया। इसने राज्य को सामाजिक और शैक्षिक रूप से पिछड़े हुए नागरिकों, जैसे कि अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST), के लिए विशेष प्रावधान बनाने का अधिकार दिया। इस खंड ने अनुच्छेद 15 और अनुच्छेद 29 (2) के तहत दिए गए समानता के अधिकार को सीमित कर दिया, जिससे आरक्षण के लिए कानूनी आधार स्थापित हुआ।
अनुच्छेद 19 में बदलाव: इस संशोधन ने अनुच्छेद 19 (1) (अ) के तहत दी गई अभिव्यक्ति और भाषण की स्वतंत्रता पर कुछ उचित प्रतिबंध लगाए। राज्य को अब "सार्वजनिक व्यवस्था," "विदेशी राज्यों के साथ मैत्रीपूर्ण संबंध," और "अपराध के लिए उकसाना" जैसे आधारों पर इस अधिकार को सीमित करने की शक्ति मिल गई।
संपत्ति के अधिकार का पुनर्गठन (अनुच्छेद 31A और 31B): यह संशोधन का सबसे महत्वपूर्ण और क्रांतिकारी हिस्सा था।
अनुच्छेद 31A को जोड़ा गया ताकि राज्य द्वारा कृषि भूमि या संपत्ति के अधिग्रहण से संबंधित किसी भी कानून को इस आधार पर अमान्य न ठहराया जा सके कि वह अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) या अनुच्छेद 19 का उल्लंघन करता है।
अनुच्छेद 31B को जोड़ा गया, जिसने नौवीं अनुसूची (Ninth Schedule) की शुरुआत की। इस अनुसूची में रखे गए कानूनों को न्यायिक समीक्षा (judicial review) से बाहर कर दिया गया। इसका मतलब था कि इन कानूनों को अदालत में चुनौती नहीं दी जा सकती।
संशोधन का प्रभाव और आलोचना
पहले संविधान संशोधन ने भारतीय राजनीति में एक नए युग की शुरुआत की।
सकारात्मक प्रभाव: इसने सामाजिक न्याय और भूमि सुधारों के लिए मार्ग प्रशस्त किया, जिससे वंचित वर्गों को शिक्षा और रोजगार में अवसर मिलने लगे।
नकारात्मक प्रभाव: इस संशोधन की कड़ी आलोचना भी हुई, क्योंकि इसने पहली बार मौलिक अधिकारों को सीमित किया और न्यायिक समीक्षा की शक्ति पर एक बड़ा प्रहार किया।
संक्षेप में, पहला संशोधन सिर्फ एक कानूनी बदलाव नहीं था, बल्कि भारतीय समाज में सामाजिक और आर्थिक असमानता को दूर करने की दिशा में एक साहसिक कदम था। इसने संविधान की 'मूल भावना' बनाम 'सरकार की सामाजिक जिम्मेदारी' के बीच एक बहस छेड़ दी, जो आज भी जारी है।
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