भारतीय संविधान का दूसरा संशोधन 1952
दूसरा संविधान संशोधन अधिनियम, 1952 – मुख्य बिंदु:
✅ संशोधित अनुच्छेद:
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अनुच्छेद 81(1)(b) को संशोधित किया गया।
✅ क्या संशोधन हुआ?
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प्रति 7.5 लाख जनसंख्या पर एक सदस्य की बाध्यता को हटाया गया।
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यह कहा गया कि संसद यह तय करेगी कि किसी राज्य को न्यूनतम कितने और अधिकतम कितने प्रतिनिधित्व मिलेंगे, ताकि सभी राज्यों को समुचित प्रतिनिधित्व मिल सके।
⚖️ संबंधित कानूनी प्रभाव और उद्देश्य:
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समान प्रतिनिधित्व की बाध्यता में लचीलापन: छोटे राज्यों को भी उचित प्रतिनिधित्व देना सुनिश्चित किया गया।
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लोकतांत्रिक संरचना को मज़बूती: इससे भारतीय लोकतंत्र में सभी क्षेत्रों की भागीदारी सुनिश्चित हुई।
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पहले आम चुनावों की तैयारी को सुगम बनाना: यह संशोधन संसद के पहले आम चुनावों (1951–52) से पहले किया गया ताकि निर्वाचन क्षेत्र तय किए जा सकें।
🧑⚖️ संबंधित केस:
इस संशोधन से सीधे तौर पर कोई सुप्रीम कोर्ट केस उत्पन्न नहीं हुआ, क्योंकि यह संविधान के ढांचे को तोड़ता नहीं था, बल्कि व्यावहारिक कठिनाइयों का समाधान करता था। लेकिन इसने "समानता के सिद्धांत" को लचीला रूप देने का रास्ता साफ किया।
📚 ऐतिहासिक पृष्ठभूमि और संदर्भ:
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यह संशोधन 1 मई 1952 को अधिनियमित हुआ।
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यह संसद के उस समय के संविधान विशेषज्ञों की दूरदृष्टि को दर्शाता है, जिन्होंने महसूस किया कि प्रत्येक राज्य का संसद में प्रतिनिधित्व आवश्यक है, चाहे जनसंख्या कम ही क्यों न हो।
📈 संशोधन का प्रभाव:
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लोकसभा की सीटों के निर्धारण में व्यावहारिकता आई।
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छोटे राज्यों और केंद्रशासित प्रदेशों को प्रतिनिधित्व मिला।
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भारत के संघीय ढांचे को संतुलित और मजबूत किया गया।
✅ निष्कर्ष:
दूसरा संविधान संशोधन भारतीय लोकतंत्र के व्यावहारिक पक्ष को दर्शाता है। यह दिखाता है कि कैसे संविधान समय और परिस्थिति के अनुसार परिवर्तनों के लिए लचीला है। इससे यह सिद्ध होता है कि भारत का संविधान न केवल सिद्धांतों पर आधारित है, बल्कि व्यावहारिक प्रशासनिक आवश्यकताओं को भी महत्व देता है।
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