भारतीय संविधान का 6वां संशोधन
भारतीय संविधान का 6वां संशोधन: उद्देश्य, प्रभाव और न्यायालय का दृष्टिकोण
अनुक्रमणिका
- 6वें संशोधन का परिचय
- संशोधन की आवश्यकता क्यों पड़ी?
- 6वें संशोधन में क्या बदलाव किया गया?
- संशोधन के बाद क्या बदला?
- सुप्रीम कोर्ट से संबंधित वाद या निर्णय
- निष्कर्ष
- FAQ: सामान्य प्रश्न
6वें संशोधन का परिचय
भारतीय संविधान का 6वां संशोधन वर्ष 1956 में संसद द्वारा पारित किया गया था। यह एक महत्वपूर्ण कर-संबंधी संशोधन था, जिसका मुख्य उद्देश्य केंद्र और राज्यों के बीच कराधान अधिकारों की स्पष्टता सुनिश्चित करना था।
संशोधन की आवश्यकता क्यों पड़ी?
संविधान में कर व्यवस्था को लेकर कुछ असमंजस की स्थिति उत्पन्न हो रही थी, विशेष रूप से अंतर-राज्यीय व्यापार और वाणिज्य पर कर लगाने के अधिकार को लेकर। कुछ राज्य सरकारें यह दावा कर रही थीं कि उन्हें अंतर-राज्यीय वस्त्रों पर कर लगाने का अधिकार है, जबकि केंद्र सरकार इसे संविधान के खिलाफ मान रही थी।
इस असमंजस से कर नीति में अस्थिरता आई और व्यापारियों तथा उद्योगों के लिए कठिनाइयाँ उत्पन्न हुईं। इसी संदर्भ में संविधान के अनुच्छेद 269 और 286 में संशोधन की आवश्यकता महसूस हुई।
6वें संशोधन में क्या बदलाव किया गया?
इस संशोधन ने निम्नलिखित मुख्य परिवर्तन किए:
- अनुच्छेद 269: इसमें स्पष्ट किया गया कि किन करों को केंद्र सरकार एकत्र करेगी लेकिन राज्य सरकारों को वितरित करेगी।
- अनुच्छेद 286: इसमें बदलाव कर यह स्पष्ट किया गया कि राज्य सरकारें अंतर-राज्यीय व्यापार पर कर नहीं लगा सकतीं।
- नया अनुच्छेद 269(1)(g): जो यह कहता है कि संसद को यह अधिकार है कि वह यह तय कर सके कि कौन-सा लेन-देन अंतर-राज्यीय माना जाएगा।
इस संशोधन का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना था कि व्यापार में कोई बाधा न आए और देश में एक समान कर नीति बने।
संशोधन के बाद क्या बदला?
6वें संशोधन के बाद भारत में अंतर-राज्यीय व्यापार पर कर व्यवस्था में एकरूपता आई। राज्यों की शक्ति सीमित कर दी गई और संसद को यह अधिकार दिया गया कि वह यह तय करे कि कौन-सा व्यापार अंतर-राज्यीय है। इससे केंद्र और राज्यों के बीच स्पष्ट कर अधिकारों की परिभाषा बनी और व्यापारिक गतिविधियाँ सुगम हुईं।
सुप्रीम कोर्ट से संबंधित वाद या निर्णय
संविधान के 6वें संशोधन से पहले और बाद में सुप्रीम कोर्ट में कई याचिकाएं दायर की गईं जिनमें करों के अधिकारों को लेकर सवाल उठाए गए थे। एक प्रमुख केस था "State of Bombay v. United Motors India Ltd. (1953)", जिसमें बॉम्बे राज्य ने अंतर-राज्यीय बिक्री पर कर लगाने की कोशिश की थी। सुप्रीम कोर्ट ने यह कर अवैध घोषित किया था और कहा था कि अनुच्छेद 286(2) के अनुसार ऐसा करना संसद की सहमति के बिना संभव नहीं है।
इस निर्णय के बाद संविधान में संशोधन लाना जरूरी हो गया ताकि संसद को यह स्पष्ट अधिकार दिया जा सके।
निष्कर्ष
भारतीय संविधान का 6वां संशोधन कराधान व्यवस्था के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण कदम था। इससे केंद्र और राज्यों के बीच अधिकारों की स्पष्टता आई और व्यापारिक गतिविधियाँ अधिक संगठित हुईं। इसने भारत में आर्थिक संघ को और मजबूत किया।
FAQ: सामान्य प्रश्न
प्रश्न 1: 6वें संशोधन की आवश्यकता क्यों पड़ी?
क्योंकि राज्यों और केंद्र सरकार के बीच कर लगाने के अधिकार को लेकर भ्रम की स्थिति उत्पन्न हो गई थी।
प्रश्न 2: 6वां संशोधन कब हुआ?
1956 में संसद द्वारा 6वां संविधान संशोधन पारित किया गया था।
प्रश्न 3: इसमें मुख्य परिवर्तन क्या था?
अनुच्छेद 269 और 286 में बदलाव कर संसद को यह अधिकार दिया गया कि वह अंतर-राज्यीय व्यापार को परिभाषित करे।
प्रश्न 4: सुप्रीम कोर्ट का इसमें क्या दृष्टिकोण रहा?
सुप्रीम कोर्ट ने बॉम्बे राज्य द्वारा लगाए गए कर को अवैध ठहराया था, जिससे संविधान में संशोधन की जरूरत पड़ी।
🔗 सभी सवाल-जवाब की लिस्ट (Sitemap) यहां देखें »
टिप्पणियाँ
एक टिप्पणी भेजें