भारतीय संविधान का पहला संशोधन (1951)

भारतीय संविधान का 11वां संशोधन: पूरी व्याख्या

📑 विषय सूची (Table of Contents)

  1. 11वां संविधान संशोधन क्या है?
  2. इस संशोधन की आवश्यकता क्यों पड़ी?
  3. यह संशोधन कब और कैसे हुआ?
  4. संशोधन के मुख्य प्रावधान (अनुच्छेद 66 और 71)
  5. निष्कर्ष
  6. ❓ FAQs - अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

11वां संविधान संशोधन क्या है?

भारतीय संविधान का 11वां संशोधन (1961) पूरी तरह से राष्ट्रपति (President) और उपराष्ट्रपति (Vice-President) के चुनाव की प्रक्रिया और उससे जुड़ी कानूनी चुनौतियों को स्पष्ट करने के लिए किया गया था। यह केंद्र-राज्य विवादों से संबंधित नहीं था, बल्कि देश के सर्वोच्च पदों के चुनाव में कानूनी निश्चितता लाने के लिए था।

इस संशोधन की आवश्यकता क्यों पड़ी?

संशोधन की आवश्यकता इसलिए पड़ी क्योंकि संविधान के अनुच्छेद 66 (उपराष्ट्रपति का चुनाव) और अनुच्छेद 71 (राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति के चुनाव से संबंधित विवाद) में एक कानूनी अनिश्चितता थी।

  • पुरानी कानूनी राय: पहले यह तर्क दिया जाता था कि यदि निर्वाचक मंडल (Electoral College) में कोई सीट खाली है (जैसे किसी राज्य विधानसभा का भंग होना), तो उस खाली सीट के कारण चुनाव को अवैध ठहराया जा सकता है।
  • लक्ष्य: 11वें संशोधन का मुख्य लक्ष्य यह सुनिश्चित करना था कि राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति का चुनाव **मान्य** रहे, भले ही उनके निर्वाचक मंडल में कोई रिक्ति हो।

यह संशोधन कब और कैसे हुआ?

11वां संशोधन वर्ष 1961 में संसद द्वारा पारित किया गया और राष्ट्रपति की स्वीकृति के बाद लागू हुआ। इसे संवैधानिक पदों के चुनाव में अनावश्यक कानूनी चुनौतियों को समाप्त करने के उद्देश्य से लाया गया था।

संशोधन के मुख्य प्रावधान (अनुच्छेद 66 और 71)

इस संशोधन ने दो मुख्य अनुच्छेदों में बदलाव किए:

  1. अनुच्छेद 66 में संशोधन (उपराष्ट्रपति का चुनाव):

    इसने यह स्पष्ट किया कि उपराष्ट्रपति का चुनाव अब **संयुक्त सत्र (Joint Session)** में गुप्त मतदान से नहीं, बल्कि **एकल संक्रमणीय मत (Single Transferable Vote)** द्वारा निर्वाचक मंडल के सदस्यों द्वारा होगा।

  2. अनुच्छेद 71 में संशोधन (चुनाव विवाद):

    यह सबसे महत्वपूर्ण बदलाव था। इसने यह स्पष्ट कर दिया कि राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति के चुनाव को केवल इस आधार पर **प्रश्नगत (Challenged) नहीं** किया जा सकता है कि निर्वाचक मंडल में कोई सदस्य अनुपस्थित है या कोई रिक्ति (Vacancy) है।

    इसने चुनावों को चुनौती देने के मामलों की सुनवाई का अधिकार सुप्रीम कोर्ट के पास रखा, लेकिन स्पष्ट कर दिया कि खाली सीट के कारण चुनाव रद्द नहीं होगा।

निष्कर्ष

11वां संविधान संशोधन भारतीय लोकतंत्र के दो सबसे बड़े संवैधानिक पदों—राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति—के चुनाव की प्रक्रिया को कानूनी रूप से अभेद्य बनाने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम था। इसने सुनिश्चित किया कि केवल किसी तकनीकी रिक्ति के कारण चुनाव बाधित न हों, जिससे लोकतांत्रिक प्रक्रिया में स्थिरता आई।

❓ FAQs - अक्सर पूछे जाने वाले प्रश्न

  • प्रश्न 1: भारतीय संविधान का 11वां संशोधन कब लागू हुआ?
    उत्तर: यह संशोधन 1961 में लागू हुआ।
  • प्रश्न 2: इस संशोधन का मुख्य विषय क्या था?
    उत्तर: इसका मुख्य विषय **राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति के चुनाव** से संबंधित विवादों और चुनाव मंडल की रिक्तियों को स्पष्ट करना था।
  • प्रश्न 3: 11वें संशोधन ने अनुच्छेद 71 में क्या बदलाव किया?
    उत्तर: इसने यह स्पष्ट किया कि राष्ट्रपति या उपराष्ट्रपति के चुनाव को निर्वाचक मंडल में रिक्ति के आधार पर चुनौती नहीं दी जा सकती।
  • प्रश्न 4: यह संशोधन क्यों आवश्यक था?
    उत्तर: यह सर्वोच्च संवैधानिक पदों के चुनाव में कानूनी स्थिरता और निश्चितता सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक था।

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